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नज़्म
ये भी तिलिस्म-ए-होश-रुबा है
ज़िंदा चलते-फिरते हँसते रोते नफ़रत और मोहब्बत करते इंसाँ
वहीद अख़्तर
नज़्म
नुशूर वाहिदी
नज़्म
इक सुकूत हर तरफ़ होश-रुबा ओ हौल-नाक
ख़ुल्द-ए-वतन के पासबाँ ख़ुल्द-ए-वतन को क्या हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तेरी नज़र में शाहिद-ओ-मशहूद एक हैं
दुनिया-ए-बे-ख़ुदी तुझे दुनिया-ए-होश है
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
यूँ गँवा न ऐ मिरी दिल-रुबा ये जो चार दिन का शबाब है
ये झुकी-झुकी सी नज़र सनम ये सवाल है कि जवाब है