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नज़्म
मेरी क़िस्मत में लिखी है ख़ार-ए-सहरा की ख़लिश
किस तवक़्क़ो पर तमन्ना-ए-गुल-ए-रा'ना करूँ
जगदीश सहाय सक्सेना
नज़्म
वो नर्गिस-ए-सियाह-ए-नीम-बाज़, मय-कदा-ब-दोश
हज़ार मस्त रातों की जवानियाँ लिए हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
महरम-ए-शबनम रफ़ीक़-ए-लाला-ए-सहरा हूँ मैं
हम-नशीन-ए-यासमीन-ओ-नर्गिस-ए-शहला हूँ मैं
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
नश्शा-ए-नर्गिस-ए-ख़ूबान-ए-वतन तुम से है
इफ़्फ़त-ए-माह-ए-जबीनान-ए-वतन तुम से है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अचानक उस को ऐसे वक़्त पहली बार देखा था
ख़ुदा मालूम क्या जादू भरा वो हुस्न-ए-रा'ना था
ऋषि पटियालवी
नज़्म
जो गोशे गोशे में पिन्हाँ है उस के राह-ए-गुरेज़
ख़याल गुम हुआ जाता है क़द्द-ए-रा'ना में