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नज़्म
हवस बाला-ए-मिम्बर है तुझे रंगीं-बयानी की
नसीहत भी तिरी सूरत है इक अफ़्साना-ख़्वानी की
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
करें नसीहत बुतों पे मरने से कोई भी फ़ाएदा नहीं है
मैं ज़िक्र करता हूँ जब वस्ल की रुतों का
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
अब्र-ए-नैसाँ का ख़वास उन की नसीहत में था
लब-ए-शीरीं से गुहर-बार गुरु-नानक थे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
नज़्म
थी वो माँ अहल-ए-दिल और नेक-मनुश नेक-निहाद
हँस के फ़रमाया मिरी जाँ ये नसीहत रख याद