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नज़्म
कार-ख़ानों के भूके जियालों के नाम
बादशाह-ए-जहाँ वाली-ए-मा-सिवा, नाएब-उल-अल्लाह फ़िल-अर्ज़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कश्ती-ए-नूह में जानवरों का हुजूम उफ़ अल्लाह
मूसा की छड़ी साँप बन जाना बहुत डराता है
मसऊ़दा इमाम
नज़्म
उसी गर्दान में अल्लाह जाने कैसा जादू था
कि अब तक हाफ़िज़े से उस की शीरीनी नहीं जाती
इशरत आफ़रीं
नज़्म
जब आस हरी खेती की उन को मेहनत पर उकसाती है
इस ऐसे सुहाने मंज़र में अल्लाह तिरी याद आती है
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
न देखा तुम ने शायद उन को अब तक चश्म-ए-इबरत से
ख़ुदा-रा लो सबक़ कुछ भी तो इन अलवाह-ए-तुर्बत से
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
वजूद-ए-मर्ग की क़ाएल नहीं थी ज़िंदगी उस की
तआला अल्लाह अब देखे कोई पाइंदगी उस की
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
पानी में था उस वक़्त वो रंगीनी का आलम
गोया है मय-ए-नाब का बहता हुआ धारा