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नज़्म
हम ने बकरी के बच्चों को कमरों में नचाना छोड़ दिया
नाराज़ न हो अम्मी हम ने हर शौक़ पुराना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
नारा-ज़न रहती है कोयल बाग़ के काशाने में
चश्म-ए-इंसाँ से निहाँ पत्तों के उज़्लत-ख़ाने में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़रिश्ता नींद का नाराज़ है मुझ से ये कहता है
बहुत दिन सो लिए बेदार रह कर भी ज़रा देखो
सरवत हुसैन
नज़्म
किसी के शहर को दरयाफ़्त करने में
किसी अनमोल साअत में किसी नाराज़ साथी को ज़रा सा पास लाने में