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नज़्म
निगाह-ए-मस्त से उस की बहक जाती थी कुल वादी
हवाएँ पर-फ़िशाँ रूह-ए-मय-ओ-मय-ख़ाना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मुझे लगता है अब साग़र भी जैसे एक मय-ख़ाना
निगाह-ए-ख़ास है जब से तिरी ऐ पीर-ए-मय-ख़ाना
अशरफ़ बाक़री
नज़्म
अहमरीं साग़र, लब-ए-ल'अलीं, निगाहें मय-फ़रोश
हर तरफ़ है एक मस्ती, हर तरफ़ है इक ख़रोश
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
जाम पुर-शोर से गिर जाने दो नाकाम तमन्नाओं की मय
फ़र्श-ए-मय-ख़ाना-ए-उल्फ़त पे उलट दो साग़र
ज़ाहिदा ज़ैदी
नज़्म
दाना तिरी निगाह में था ख़िर्मन-ए-मुराद
तुझ को ख़बर थी क़तरे में दरिया का जोश है
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
निगाह में लिए हुए घुटी घुटी सी जुस्तुजू
भटक रहे हैं वादी-ए-ख़िज़ाँ में बहर-ए-रंग-ओ-बू
मोहसिन भोपाली
नज़्म
ये इडेन गार्डेन हमदम निगाह-ओ-दिल की जन्नत है
यहाँ हव्वा की रंगीं बेटियाँ हर शाम आती हैं