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नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
आज भी नुक्ता-चीं हूँ मैं ख़ल्वतियान-ए-ख़ास का
ख़ल्वतियान-ए-ख़ास का आज भी हूँ मिज़ाज-दाँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
एहतिमाम-ए-ज़िंदगी जिस में ब-तौर-ए-ख़ास हो
आसमाँ जिस का मोहब्बत हो ज़मीं इख़्लास हो