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नज़्म
दिलों में अहल-ए-ज़मीं के है नीव उस की मगर
क़ुसूर-ए-ख़ुल्द से ऊँचा है बाम-ए-आज़ादी
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
ये दुनिया ख़ौफ़ और लालच पे जिस की नीव रक्खी है
इसी मिट्टी से फूटे हैं इसी धरती के पाले हैं
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
उन्हीं हालात में ख़्वाबों की नई नीव रखूँगा
बालों को रंगने की बजाए नए इन्द्र-धनुष रचूँगी
ममता तिवारी
नज़्म
किस क़दर तुम पे गिराँ सुब्ह की बेदारी है
हम से कब प्यार है हाँ नींद तुम्हें प्यारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रात में जिन के बच्चे बिलकते हैं और
नींद की मार खाए हुए बाज़ुओं में सँभलते नहीं