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नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
आसिम बद्र
नज़्म
दरख़्तों के तने दीवार फाटक या मुँडेरें हों
पनपती हैं सहारों पर तो ये सरसब्ज़ रहती हैं
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
फिर ये हैं और अदब-सोज़ मुदारातें हैं
क्या ज़माने में पनपने की यही बातें हैं