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नज़्म
मुझ में पर्वाज़-ए-बग़ावत ने पनपना चाहा
मेरे जज़्बात-ओ-तसव्वुर में बड़ी शिद्दत थी
विनोद कुमार त्रिपाठी बशर
नज़्म
मैं क़ुर्बतों का हसीन पन्ना संजो के रखने की बे-इजाज़त सज़ा दूँ तुम को
मगर जो होना था हो गया है
पीयूष शर्मा
नज़्म
फिर ये हैं और अदब-सोज़ मुदारातें हैं
क्या ज़माने में पनपने की यही बातें हैं