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नज़्म
इल्म से रहती है पाबंद-ए-शिकन जिस की जबीं
नाज़ से शानों पर उस की ज़ुल्फ़ लहराती नहीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मज़हब का इरादा भी उन का, दुनिया-ए-सियासत भी उन की
पाबंद हमें करने के लिए सौ राहें निकाली जाती हैं
जमील मज़हरी
नज़्म
हो के पाबंद-ए-हुकूमत किस क़दर मजबूर हैं
या'नी कोसों हम अरब की मंज़िलों से दूर हैं
शहज़ादी कुलसूम
नज़्म
आप की बेड़ियाँ अफ़राद को पाबंद बना सकती हैं
आप की बेड़ियाँ इंसान को पाबंद नहीं कर सकतीं
अख़्तर पयामी
नज़्म
राह-ए-हक़ में न थे पाबंद किसी मज़हब के
तारिक़-ए-सुबहा-ओ-ज़ुन्नार गुरु-नानक थे