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नज़्म
मुझे गुमान था कि तो रात और क़ुरआन के औराक़ से निकल कर
एक पुर-जलाल मर्दाना पैकर मेरे सामने होगा
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
हाँ ऐ मसाफ़-ए-हस्ती! मत पूछ मुझ से क्या हूँ
इक अर्सा-ए-बला हूँ इक लुक़मा-ए-फ़ना हूँ
ग़ुलाम भीक नैरंग
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात