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नज़्म
मेरे घर की ये दीवारें जैसे पी कर बैठी हैं
मेरे जलते जलते आँसू मेरे लहू की बरसातों को
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों