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नज़्म
मैं ख़ुद में झेंकता हूँ और सीने में भड़कता हूँ
मिरे अंदर जो है इक शख़्स मैं उस में फड़कता हूँ
जौन एलिया
नज़्म
जिस की मेहनत से फबकता है तन-आसानी का बाग़
जिस की ज़ुल्मत की हथेली पर तमद्दुन का चराग़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
यही क़ौमों को पहुँचाता है बाम-ए-औज-ओ-रिफ़अत पर
यही मुल्कों के अंदर फूँकता है रूह-ए-बेदारी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
बदन के ख़ून का लोहा ख़यालों के अलाव में उबल कर
सुर्ख़ नेज़े की अनी को सर की जानिब फेंकता है
वहीद अहमद
नज़्म
लाखों बीमार तड़पते हैं लाखों नादार फड़कते हैं
बंगाल बिहार चलो तो ज़रा हालत दिखलाएँ भारत की