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नज़्म
आप हैं फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा-ए-पाक से कुर्सी-नशीं
इंतिज़ाम-ए-सल्तनत है आप के ज़ेर-ए-नगीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
जो सामईन हैं उन पर भी नींद तारी है
सवारी उस को मिली जिस पे फ़ज़्ल-ए-बारी है
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
फ़ज़्ल-ए-बारी से जो कल शाम हुई चाँद की दीद
आ गई हाथ हक़ीक़त में मसर्रत की कलीद
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
नज़्म
हुक्मराँ फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा से इक वसीअ' गुलशन का है
रहमत-ए-बारी है नाज़िल हर तरह आबाद है
मंझू बेगम लखनवी
नज़्म
ब-ज़ोर-ए-क़र्ज़ दूकानों पे इतना फ़ज़्ल-ए-बारी है
कि इस घमसान में इंसान पर इंसान तारी है
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
ख़ुशा कि आज ब-फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा वो दिन आया
कि दस्त-ए-ग़ैब ने इस घर की दर-कुशाई की
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये क्या मुमकिन नहीं तू आ के ख़ुद अब इस का दरमाँ कर
फ़ज़ा-ए-दहर में कुछ बरहमी महसूस होती है