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नज़्म
सब गलियों में तरनजन थे और हर तरनजन में सखियाँ थीं
सब के जी में आने वाली कल का शौक़-ए-फ़रावाँ था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
न तूफ़ाँ हो न तूफ़ाँ में ग़रीबों का जहाज़ आए
ख़ुदाया हम फ़रेब-ए-कश्ती-ओ-साहिल से बाज़ आए