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नज़्म
हुस्न अभी तक दाम-ए-फ़रेब-ए-तफ़रक़ा-ओ-तफ़रीक़ में है
'इश्क़ ख़ुलूस-ए-‘आम का हामिल कल भी था और आज भी है
मासूम शर्क़ी
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अफ़्रीक़ा में न होगा फ़र्क़-ए-सपेद-ओ-असवद
लाएगी रंग ख़ूनीं तक़रीर गोखले की
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
भई, मैं ने अपने हाथों से दफ़्न किया है उसे!
फ़र्क़ ये है कि दफ़्न होने के बावजूद ज़िंदा है वो