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नज़्म
हम ने बकरी के बच्चों को कमरों में नचाना छोड़ दिया
नाराज़ न हो अम्मी हम ने हर शौक़ पुराना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
जिस के पंजे से कोई ख़ुश-नसीब ही छुटता है
मुझे बरसों पहले गाँव में अपनी चितकबरी बकरी याद आ गई