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नज़्म
नीस्त पैग़मबर व-लेकिन दर बग़ल दारद किताब
क्या बताऊँ क्या है काफ़िर की निगाह-ए-पर्दा-सोज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हुक़्क़ा सुराही जूतियाँ दौड़ें बग़ल में मार
काँधे पे रख के पालकी हैं दौड़ते कहार
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जिस के बाज़ू की सलाबत पर नज़ाकत का मदार
जिस के कस-बल पर अकड़ता है ग़ुरूर-ए-शहरयार
जोश मलीहाबादी
नज़्म
घड़ी की टिक-टिक बोल रही है रात के शायद एक बजे हैं
बटला हाउस की एक गली में मोटे कुत्ते भौंक रहे हैं
आसिम बद्र
नज़्म
जब पढ़ाई करते करते बोर हो जाता हूँ मैं
दाब कर बल्ला बग़ल में फ़ील्ड पर आता हूँ मैं