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नज़्म
ख़ुद बचन दे के 'जरा' सिंध से रन में भागे
रहे बद-गोई-ए-शिशुपाल पे ख़ामोश कहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
उर्दू ज़बाँ का शे'र हो हिन्दी का या बचन
जौहर-शनास के लिए यकसाँ है हर सुख़न
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
नज़्म
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिल-नवाज़ी की
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सैकड़ों नख़्ल हैं काहीदा भी बालीदा भी हैं
सैकड़ों बत्न-ए-चमन में अभी पोशीदा भी हैं