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नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
तुम्हें ऐ काश बीमारी न हो दीवार पढ़ने की
अजब है 'सार्त्र' और 'रसेल' भी अख़बार पढ़ते थे
जौन एलिया
नज़्म
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूक के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के
साहिर लुधियानवी
नज़्म
बद-हाल घरों की बद-हाली बढ़ते बढ़ते जंजाल बनी
महँगाई बढ़ कर काल बनी सारी बस्ती कंगाल बनी