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नज़्म
तितलियाँ अपने परों पर पा के क़ाबू हर तरफ़
सेहन-ए-गुलशन की रविश पर रक़्स फ़रमाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
ये गुलशन-ए-वतन की कहलाती है दुलारी
हिन्दी ज़बाँ हमारी लगती है हम को प्यारी
अक़ील सिद्मादीकी माहिर
नज़्म
गुलशन-ए-आलम में जब तशरीफ़ लाती है बहार
रंग-ओ-बू के हुस्न क्या क्या कुछ दिखाती है बहार