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नज़्म
नाम भी उस ने बच्चे का मेरे ही नाम पे रक्खा था
फिर कहीं उस से बिछड़ न जाऊँ ऐसे मुझ को तकती थी
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
वो जो चुपके से बिछड़ जाते हैं लम्हे हैं मसाफ़त
जिन की ख़ातिर पाँव पर पहरे बिठाती है
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
जश्न-ए-आदम पर बिछड़ कर मिलने वालों का विसाल
शौक़ के लम्हात के मानिंद आज़ाद-ओ-अज़ीम
नून मीम राशिद
नज़्म
वो दिन जो तुझ में रौशन थे वो बरसों से कहाँ देखे
बिछड़ कर तुझ से जो मंज़र भी देखे राएगाँ देखे
कुमार पाशी
नज़्म
ख़्वाब में मिलते हैं कुछ लोग बिछड़ जाते हैं
उन की याद और भी रह रह के सताती है मुझे