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नज़्म
है ईज़द ईज़दाँ इक रम्ज़ जो बे-रम्ज़ निस्बत है
मियाँ इक हाल है इक हाल जो बे-हाल-ए-हालत है
जौन एलिया
नज़्म
फ़ाक़ा-मस्ती में बिखरते हुए सारे रिश्ते
तंग-दस्ती के सबब सारी फ़ज़ाएँ बेहाल
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
अपने मयख़ाने का इक मय-कश-ए-बेहाल है ये
हाँ वही मर्द-ए-जवाँ-बख़्त ओ जवाँ-साल है ये
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
क्या किसी की मश्रिक-ओ-मग़रिब में दिलदारी हुई
भूक से बेहाल हैं जो उन की ग़म-ख़्वारी हुई
अंजुम आज़मी
नज़्म
आज बे-कैफ़ हूँ बे-रंग हूँ बेहाल हूँ मैं
ख़ुद यगानों की निगाहों से भी पामाल हूँ मैं