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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ख़ुद बचन दे के 'जरा' सिंध से रन में भागे
रहे बद-गोई-ए-शिशुपाल पे ख़ामोश कहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
निकल कर जू-ए-नग़्मा ख़ुल्द-ज़ार-ए-माह-ओ-अंजुम से
फ़ज़ा की वुसअतों में है रवाँ आहिस्ता आहिस्ता
नून मीम राशिद
नज़्म
बज रहे हैं मध-भरी आवाज़ में होली के साज़
खिंच के आँखों में न आ जाए दिल-ए-हिरमाँ-नवाज़
शातिर हकीमी
नज़्म
सुहागन है तो उस की माँग में झूमर चमकता है
कुँवारी है तो उस के जिस्म से ख़ुशबू निकलती है