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नज़्म
अब तो इस बाग़ पे है सब की मोहब्बत की निगाह
जो कि पौदे थे शजर हो गए माशा-अल्लाह
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
ऐ क़लम क्या कहूँ मैं सेहर-बयानी तेरी
हाल-ए-दिल अपना सुनाता हूँ ज़बानी तेरी