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नज़्म
किस किस तरह के हो गए महबूब-ए-कज-कुलाह
तन जिन के मिस्ल-ए-फूल थे और मुँह भी रश्क-ए-माह
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जिस के छू जाते ही मिस्ल-ए-नाज़नीन-ए-मह-जबीं
करवटों पर करवटें लेती है लैला-ए-ज़मीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मिस्ल-ए-पैराहन-ए-गुल फिर से बदन चाक हुए
जैसे अपनों की कमानों में हों अग़्यार के तीर
अहमद फ़राज़
नज़्म
तेरा हर लम्हा मुनव्वर हर घड़ी नय्यर-ब-दोश
ज़िंदगी तेरी रहे मिस्ल-ए-चराग़-ए-ज़ौ-फ़रोश
बिलक़ीस जमाल बरेलवी
नज़्म
ये इस्तिग़्ना है पानी में निगूँ रखता है साग़र को
तुझे भी चाहिए मिस्ल-ए-हबाब-ए-आबजू रहना
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिला हूँ आज मैं तुझ से तो वसवसे ये तमाम
मिटे ख़याल की दुनिया से मिस्ल-ए-नक़्श-बर-आब
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
गुलिस्तान-ए-अदब में जिस क़दर थे मुंतशिर जल्वे
मुनज़्ज़म कर चुकी है उन को मिस्ल-ए-जिस्म-ओ-जाँ उर्दू
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
हो न ये फूल तो बुलबुल का तरन्नुम भी न हो
चमन-ए-दह्र में कलियों का तबस्सुम भी न हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
एक दिन थी दोपहर की सख़्त गर्मी आश्कार
धूप की शिद्दत थी मिस्ल-ए-नार-ए-दोज़ख़ क़हर-बार