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नज़्म
इक तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल है सो वो उन को मुबारक
इक अर्ज़-ए-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुबारक हो कि फिर से हो गया ''डांस'' और ''डिनर'' चालू
ख़लास अहल-ए-नज़र होंगे हुआ दर्द-ए-जिगर चालू
मजीद लाहौरी
नज़्म
इक ऐसा ख़्वाब जिस के दामन-ए-सद-चाक में कोई मुबारक कोई रौशन दिन नहीं था
अभी कुछ दिन लगेंगे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
दम-ए-सुब्ह दर-ब-दर हैं
हुज़ूर के नुतफ़े को मुबारक के निस्फ़ विर्सा से बे-मो'तबर हैं
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
मगर बद-मस्त है हर हर क़दम पर लड़खड़ाती है
मुबारक दोस्तो लबरेज़ है अब इस का पैमाना
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कितनी फ़र्ख़न्दा है शब कितनी मुबारक है सहर
वक़्फ़ है मेरे लिए तेरी मोहब्बत की नज़र
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
द्वारका-जी का बसाना तो मुबारक लेकिन
कर न दें ब्रिज की गलियों को फ़रामोश कहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
ये शादी ख़ाना-आबादी हो मेरे मोहतरम भाई
मुबारक कह नहीं सकता मिरा दिल काँप जाता है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इक मुहिब्ब-ए-क़ौम ने अपने मुबारक हाथ से
क़ौम की तालीम की बुनियाद डाली उस्तुवार