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नज़्म
अपने हिंदुस्तान में मुर्दा-परस्ती आम है
जितने शाएर मर चुके हैं बस उन्हीं का नाम है
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
क़ौम की मुर्दा रगों में तू ने दौड़ाया लहू
हिन्दियों की पस्त हिम्मत को किया फिर से जवाँ
साबिर अबुहरी
नज़्म
ये सरगोशियाँ कह रही हैं अब आओ कि बरसों से तुम को बुलाते बुलाते मिरे
दिल पे गहरी थकन छा रही है
मीराजी
नज़्म
सफ़ीर-ए-लैला यही खंडर हैं जहाँ से आग़ाज़-ए-दास्ताँ है
ज़रा सा बैठो तो मैं सुनाऊँ
अली अकबर नातिक़
नज़्म
वो इक मुसाफ़िर था जा चुका है
बता गया था कि बे-यक़ीनों की बस्तियों में कभी न रहना
अली अकबर नातिक़
नज़्म
ऐ सती ऐ जल्वा-गाह-ए-शोला-ए-तनवीर-ए-हुस्न
पाक-दामानी का नक़्शा है तिरी तस्वीर-ए-हुस्न