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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
और कुछ देर में जब फिर मिरे तन्हा दिल को
फ़िक्र आ लेगी कि तन्हाई का क्या चारा करे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इंसाँ जब तक बच्चा है तब तक समझो सच्चा है
जूँ-जूँ उस की उम्र बढ़े मन पर झूट का मेल चढ़े
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कश्ती भी नई दरिया भी नया साहिल भी नया मल्लाह भी नए
अब कर के भरोसा हिम्मत पर तूफ़ान में राह बना डालें
कँवल डिबाइवी
नज़्म
नींद भी आए नहीं जागे ख़ुशी में रात भर
आने वाली सुब्ह पर थी बस तसव्वुर की नज़र