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नज़्म
ख़्वाब-ए-गिराँ से ग़ुंचों की आँखें न खुल सकीं
गो शाख़-ए-गुल से नग़्मा बराबर उठा किया
आल-ए-अहमद सुरूर
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
थके-माँदे मुसाफ़िर को सुला देता लब-ए-दरिया
हवा-ए-सर्व बन कर मौजा-ए-‘अम्बर-फ़शाँ हो कर
अहसन अहमद अश्क
नज़्म
तेरी सुर्ख़ी में निहाँ है कुछ शराब-ए-ज़िंदगी
तेरी तह में ग़र्क़ है मौज-ए-शबाब-ए-ज़िंदगी
साक़िब कानपुरी
नज़्म
बू-ए-गुल ले गई बैरून-ए-चमन राज़-ए-चमन
क्या क़यामत है कि ख़ुद फूल हैं ग़म्माज़-ए-चमन
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अहद-ए-गुल है और वही रंगीनी-ए-गुलज़ार है
ख़ाक-ए-हिंद अब तक अगर देखो तजल्ली-ज़ार है