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नज़्म
जिस ने ख़ुलूस-ए-दिल से ऐ 'कैफ़' सब को पाला
जिस का हर एक घर में अब भी है बोल-बाला
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
तिरे अशआ'र पढ़ता हूँ तिरे नग़्मात गाता हूँ
कमाल-ए-कैफ़-ओ-फ़र्त-ए-बे-खु़दी में झूम जाता हूँ
शातिर हकीमी
नज़्म
क्या नग़्मा-हा-ए-कैफ़ का दरिया बहा गया
ख़ुद हुस्न को जहाँ में हसीं-तर बना गया
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
ये लुत्फ़ देख देख कर ज़बाँ पे बार बार है
ये मौसम-ए-बहार है ये मौसम-ए-बहार है
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
किसी ने तोड़ डाला ये तिलिस्म-ए-कैफ़-ओ-ख़्वाब आख़िर
मिरी आँखों के आगे आए शमशीर ओ शबाब आख़िर