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नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
आज तो हम बिकने को आए, आज हमारे दाम लगा
यूसुफ़ तो बाज़ार-ए-वफ़ा में, एक टिके को बिकता है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ज़ाहिरी ये रब्त-ए-उल्फ़त भी कभी धोका न हो
ऐ यक़ीन-ए-इल्तिफ़ात-ए-हुस्न फिर ऐसा न हो
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
यक़ीन-ए-अज़्म-ओ-अमल इश्तिराक-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र
इन्हीं से दर्स-ए-तपिश ले रही है रूह-ए-बशर
सहबा लखनवी
नज़्म
राबिया सुलताना नाशाद
नज़्म
सोचते थे कि हो ना-वाक़िफ़-ए-आदाब-ए-वफ़ा
तुम में तो तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ का सलीक़ा भी नहीं
नसीम सय्यद
नज़्म
कि वो जो क़त्ल हुआ बर-बिना-ए-जुर्म-ए-वफ़ा
कि वो जो लिखता रहा अपने ख़ूँ से नग़्मा-ए-अम्न