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नज़्म
बज़्म-ए-आलम में वो कैफ़ियात-ए-रंग-ओ-बू नहीं
रौनक़-ए-ऐवान-ए-गेती आज शायद तू नहीं
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
न पूछो किस जहान-ए-रंग-ओ-बू से हो के आए हैं
जहाँ दिल से मता-ए-बे-बहा हम खो के आए हैं
नवाब सय्यद हकीम अहमद नक़्बी बदायूनी
नज़्म
फ़रेब खाए हैं रंग-ओ-बू के सराब को पूजता रहा हूँ
मगर नताएज की रौशनी में ख़ुद अपनी मंज़िल पे आ रहा हूँ
जमील मज़हरी
नज़्म
तू ज़मीन-ए-रंग-ओ-बू, तू आसमान-ए-रंग-ओ-बू
मुख़्तसर ये है कि तू है इक जहान-ए-रंग-ओ-बू
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
मुझ को एहसास-ए-फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू होता रहा
मैं मगर फिर भी फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू खाता रहा
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हो जिन्हें मंज़ूर तस्ख़ीर-ए-जहान-ए-रंग-ओ-बू
पहले वो चश्म-ए-हक़ीक़त-आश्ना पैदा करें