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नज़्म
वो हँसती हो तो शायद तुम न रह पाते हो हालों में
गढ़ा नन्हा सा पड़ जाता हो शायद उस के गालों में
जौन एलिया
नज़्म
हैं जसोधा के लिए ज़ीनत-ए-आग़ोश कहीं
गोपियों के भी तसव्वुर से हैं रू-पोश कहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन दिल में निहाँ रखते हैं
मिस्ल-ए-ख़ूँ जोश ये रग रग में रवाँ रखते हैं
बर्क़ देहलवी
नज़्म
ख़्वाबों के रन में पड़े हुए ख़्वाहिश के अधूरे जिस्मों से
और मान की रूह में गड़े हुए तर पंजों से
नैना आदिल
नज़्म
किस क़यामत का भरा सोज़ तिरे साज़ में है
रंग-ए-उलफ़त भी निहाँ ख़ूबी-ए-अंदाज़ में है