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नज़्म
जब न मैं मैं हूँ न तुम तुम हो तो फिर आँखों में
ये गिराँबारी-ए-एहसास-ए-शनासाई क्यूँ
शाहिद अख़्तर
नज़्म
इंतिहा-ए-क़ुर्ब-ओ-रब्त-ए-बाहमी के बावजूद
सीने में धड़कन सी दिल में दर्द सा है आज-कल
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
अल-मुख़्तसर हों जितने सितम तुझ पे टूट जाएँ
लेकिन ये रब्त-ए-ज़ीस्त न टूटे ख़ुदा करे
ओवेस अहमद दौराँ
नज़्म
आवाज़ा-ए-हक़ जब लहरा कर भगती का तराना बनता है
ये रब्त-ए-बहम ये जज़्ब-ए-दरूँ ख़ुद एक ज़माना बनता है
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
ज़ाहिरी ये रब्त-ए-उल्फ़त भी कभी धोका न हो
ऐ यक़ीन-ए-इल्तिफ़ात-ए-हुस्न फिर ऐसा न हो