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नज़्म
'अकबर' ने जाम-ए-उल्फ़त बख़्शा इस अंजुमन को
सींचा लहू से अपने 'राणा' ने इस चमन को
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
क्या ज़रूरी है कि हम फ़ोन पे बातें भी करें
क्या ज़रूरी है कि हर लफ़्ज़ महकने भी लगे
मुनव्वर राना
नज़्म
फिर ज़रूरत है जवाँ मर्दों की ऐ मादर-ए-हिन्द
राणा-प्रताप से ख़ुद्दार बशर पैदा कर