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नज़्म
हाए उन को भी ख़बर क्या कि वो इक ज़ख़्म-नसीब
ज़िंदगी के लिए निकला था जो राही बन कर
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
हमारी ही तरह जो पाएमाल-ए-सतवत-ए-मीरी-ए-ओ-ए-शाही में
लिखोखा आबदीदा पा-पियादा दिल-ज़दा वामाँदा राही हैं