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नज़्म
सरज़मीन-ए-हिन्द को जन्नत बनाने के लिए
कैसे कैसे दस्त-ओ-बाज़ू के शजर जाते रहे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
जमील मज़हरी
नज़्म
पयाम-ए-ज़िंदगी कुछ हौसला-सामाँ भी होता हो
बहार-ए-ज़िंदगी ग़ैरत-दह-ए-जन्नत तो हो लेकिन
सलाम मछली शहरी
नज़्म
किसे ख़बर है क़यामत में हम मिलें न मिलें
फ़ज़ा-ए-रौज़ा-ए-जन्नत में हम मिलें न मिलें
अख़्तर शीरानी
नज़्म
इस रियाज़-ए-दहर में जब तक रहें हँसते रहें
उन से सीखूँगा मैं हँसना और लूटूँगा बहार