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नज़्म
किया है जिस जिस ने दूर अंधेरा उसे उसे रौशनी में लाओ
जहाँ जहाँ दफ़्न है उजाला वहाँ वहाँ पर दिए जलाओ
नज़ीर बनारसी
नज़्म
मगर ये सब कुछ पुराने क़िस्से पराई बस्ती के मुर्दा क़ज़िए
तुम्हें फ़सानों से क्या लगाओ
अली अकबर नातिक़
नज़्म
अब इस दरिया तक मत आओ जिस की लहरें टूट चुकी हैं
इस सीने से लौ न लगाओ जिस की नब्ज़ें छूट चुकी हैं
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
एक उदास चाँद से लगाओ के दिनों की यादगार है
मैं मंज़रों से सरसरी गुज़रने वाला शख़्स था
असअ'द बदायुनी
नज़्म
मैं ने कहा क्या मोल है इस का, बोला इक मुस्कान
तन में आग लगाओ इस से रक्खो मन की आन