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नज़्म
त'अल्लुक़ बोझ बन जाए तो उस को तोड़ना अच्छा
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मुझे इस शाम है अपने लबों पर इक सुख़न लाना
'अली' दरवेश था तुम उस को अपना जद्द न बतलाना
जौन एलिया
नज़्म
तुम्हारे ग़म के सिवा और भी तो ग़म हैं मुझे
नजात जिन से मैं इक लहज़ा पा नहीं सकता
साहिर लुधियानवी
नज़्म
रेगज़ारों में बगूलों के सिवा कुछ भी नहीं
साया-ए-अब्र-ए-गुरेज़ाँ से मुझे क्या लेना
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो कुछ नहीं है अब इक जुम्बिश-ए-ख़फ़ी के सिवा
ख़ुद अपनी कैफ़ियत-ए-नील-गूँ में हर लहज़ा