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नज़्म
शहज़ाद अंजुम बुरहानी
नज़्म
सब अफ़्साने झूटे हैं, सब ख़्वाब बिखरने वाले हैं
इस ला-फ़ानी झूट के पीछे सच है अगर तो इतना है
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
मैं जिंसी खेल को सिर्फ़ इक तन-आसानी समझता हूँ
ज़रीया और है मा'बूद से मिलने का दुनिया में
मीराजी
नज़्म
है अब तक सेहर सा छाया तिरी जादू-नवाई का
दिल-ए-उर्दू पे अब तक दाग़ है तेरी जुदाई का