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नज़्म
जा-ब-जा बोर्ड पे लिक्खा है कि ख़ामोश रहो
''फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करो महव-ए-ग़म-ए-दोश रहो''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
जिस के होने से शुऊ'र-ए-दोश-ओ-फ़र्दा था हमें
जिस के होने से यक़ीं था अपने होने का हमें
ग़ुलाम हुसैन साजिद
नज़्म
द्वारका-धीश कहीं बन के मुकुट सर पे रखा
काली कमली रही जंगल में सर-ए-दोश कहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आह ये दुनिया ये मातम-ख़ाना-ए-बरना-ओ-पीर
आदमी है किस तिलिस्म-ए-दोश-ओ-फ़र्दा में असीर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
पढ़ने का ग़म है इन को न है इन को फ़िक्र-ए-दोश
हर वक़्त खेलते हैं पढ़ाई का किस को होश