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नज़्म
बदल जाए अभी 'इन'आम' नज़्म-ए-शोरिश-ए-बातिल
ज़रा हम इत्तिबा'-ए-मशरब-ए-रूहानियाँ कर लें
इनाम थानवी
नज़्म
गर्दन-ए-हक़ पर ख़राश-ए-तेग़-ए-बातिल ता-ब-कै?
अहल-ए-दिल के वास्ते तौक़-ओ-सलासिल ता-ब-कै?
जोश मलीहाबादी
नज़्म
क्या कहा बहर-ए-मुसलमाँ है फ़क़त वादा-ए-हूर
शिकवा बेजा भी करे कोई तो लाज़िम है शुऊर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हम पे ग़द्दारी की तोहमत ये नवाज़िश देखिए
देख लीजे ज़ह्र कितना उस रग-ए-बातिल में है
अख़्तर हुसैन शाफ़ी
नज़्म
रौ में ये मौजा-ए-बातिल की बहा जाता है
फ़ज़्ल से अपने मुसलमाँ को मुसलमाँ कर दे