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नज़्म
उम्मतें और भी हैं उन में गुनहगार भी हैं
इज्ज़ वाले भी हैं मस्त-ए-मय-ए-पिंदार भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
थी फ़रिश्तों को भी हैरत कि ये आवाज़ है क्या
अर्श वालों पे भी खुलता नहीं ये राज़ है क्या
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कल और आएँगे नग़्मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझ से बेहतर कहने वाले तुम से बेहतर सुनने वाले
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कुछ ऐसा है ये मैं जो हूँ ये मैं अपने सिवा हूँ ''मैं''
सो अपने आप में शायद नहीं वाक़े हुआ हूँ मैं
जौन एलिया
नज़्म
अता मोमिन को फिर दरगाह-ए-हक़ से होने वाला है
शिकोह-ए-तुर्कमानी ज़ेहन हिन्दी नुत्क़ आराबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएँगे
कुछ अपनी सज़ा को पहुँचेंगे, कुछ अपनी जज़ा ले जाएँगे