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नज़्म
मिरे वीरान दिल में रेंगती हैं मकड़ियाँ ग़म की
तमन्नाओं के काले नाग शब-भर सरसराते हैं
रहमान फ़ारिस
नज़्म
मिरे अफ़्कार पे ये कैसी वीरानी सी छाई है
बहुत कुछ सोचता हूँ फिर भी अब सोचा नहीं जाता