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नज़्म
कौन कहे किस सम्त है तेरी रौशनियों की राह
हर जानिब बे-नूर खड़ी है हिज्र की शहर-पनाह
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
उस दिन शहर-ए-पनाह में सब से पहला आने वाला मैं था
और चाँद समान झलाझल चेहरे फ़ानूसों का सौत बने थे