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नज़्म
चमक हीरे से बढ़ कर ऐ तबस्सुम तुझ में पिन्हाँ है
उन्हीं होंटों पे ज़ौ बिखरा तू जिन होंटों को शायाँ है
अमजद नजमी
नज़्म
वो हँसती हो तो शायद तुम न रह पाते हो हालों में
गढ़ा नन्हा सा पड़ जाता हो शायद उस के गालों में
जौन एलिया
नज़्म
यही शायद उस ख़ाक को गिल बना दे!
तमन्ना की वुसअत की किस को ख़बर है जहाँ-ज़ाद लेकिन