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नज़्म
सर्द लाशों के अम्बार को आ के बिखरा गए
शिकस्ता परों को हवाओं के झोंके न जाने किधर को उड़ा ले गए
फ़रीद इशरती
नज़्म
बे-कराँ आसमानों की पिहनाइयाँ बे-नशेमन शिकस्ता परों की तग-ओ-ताज़ पर बैन करती रहीं
और हवा चुप रही
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
वो क्या जानें क्यों माह-पारों से पूछो
मोहब्बत है क्या ग़म के मारों से पूछो