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नज़्म
दिल के ऐवाँ में लिए गुल-शुदा शम्ओं की क़तार
नूर-ए-ख़ुर्शीद से सहमे हुए उकताए हुए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
शोर मचा है बाज़ारों में टूट गए दर ज़िंदानों के
वापस माँग रही है दुनिया ग़सब-शुदा हक़ इंसानों के
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
नहीं हर चंद किसी गुम-शुदा जन्नत की तलाश
इक न इक ख़ुल्द-ए-तरब-नाक का अरमाँ है ज़रूर